مصطفی کی جہاں رسائی ہے

بزم حضور آفتاب ملت
 دریا آباد بارہ بنکی میں 
کہا گیا کلام 

کلام سرتاج الشعراء 

 جس نے آقا سے لو لگائی ہے 
خلد میں اسکی ہی رسائی ہے
 نعت جس نے بھی گنگنائی ہے
 اس کی تقدیر جگمگائی ہے
 میرے آقا کے نور کے صدقے
 بزم کونین جگمگائی ہے
 جس نے دیکھا ہے گنبد خضریٰ 
 لذت دید اس نے پائی ہے 
 شہر طیبہ سے آکے ٹھنڈی ہوا 
جان و دل میں مرے سمائی ہے
 اس جا کوئی پہنچ نہ پائےگا
 *مصطفے کی جہاں رسائی ہے* 
 جس نے توہین کی ہے آقا کی
 اس کی خاطر کہاں رہائی ہے 
 نعت لکھنے لگا ہوں جب سے میں
 خوب عزت جہاں میں پائی ہے
 ہم جسے لا مکان کہتے ہیں 
*مصطفے کی وہاں رسائی ہے*
 کرنا سرتاج تو بھی ذکر رب 
درد دل کی یہی دوائی ہے 
 سرتاج احمد شحنہ مؤ سکندرپور 
امبیڈکر نگر یوپی

بزم حضور آفتاب ملت دریا آباد بارہ بنکی میں کہا گیا کلام   جس نے آقا سے لو لگائی ہے  خلد میں اسکی ہی رسائی ہے  نعت جس نے بھی گنگنائی ہے  اس کی تقدیر جگمگائی ہے  میرے آقا کے نور کے صدقے  بزم کونین جگمگائی ہے  جس نے دیکھا ہے گنبد خضریٰ   لذت دید اس نے پائی ہے   شہر طیبہ سے آکے ٹھنڈی ہوا  جان و دل میں مرے سمائی ہے  اس جا کوئی پہنچ نہ پائےگا  *مصطفے کی جہاں رسائی ہے*   جس نے توہین کی ہے آقا کی  اس کی خاطر کہاں رہائی ہے   نعت لکھنے لگا ہوں جب سے میں  خوب عزت جہاں میں پائی ہے  ہم جسے لا مکان کہتے ہیں  *مصطفے کی وہاں رسائی ہے*  کرنا سرتاج تو بھی ذکر رب  درد دل کی یہی دوائی ہے   سرتاج احمد شحنہ مؤ سکندرپور  امبیڈکر نگر یوپی


नाते रसूल 

जिसने आका से लौ लगाई है
खुल्द में उसकी ही रेसाई है

नात जिसने भी गुनगुनाई है
उसकी तकदीर जगमगाई है

जिसने देखा है गुम्बदे खज़रा
लज़्ज़ते दीद उसने पाई है

शहरे तैबा से आके ठंडी हवा
जानो दिल में मेरे समाई है

मेरे आक़ा के नूर के सदक़े
बज़्में कौनेन जगमगाई है

उस जा कोई पहुंच न पाएगा
मुस्तफा की जहां रेसाई है

जिसने तौहीन की है आक़ा की
उसकी खातिर कहां रेहाई है

नात लिखने लगा हूं जब से मैं
खूब इज़्ज़त जहां पाई है

करना सरताज तू भी ज़िक्रे रब
दर्दे दिल की यही दवाई है


सरताज अहमद सहने मऊ सिकन्दर पुर अम्बेडकर नगर


नाते रसूल   जिसने आका से लौ लगाई है खुल्द में उसकी ही रेसाई है  नात जिसने भी गुनगुनाई है उसकी तकदीर जगमगाई है  जिसने देखा है गुम्बदे खज़रा लज़्ज़ते दीद उसने पाई है  शहरे तैबा से आके ठंडी हवा जानो दिल में मेरे समाई है  मेरे आक़ा के नूर के सदक़े बज़्में कौनेन जगमगाई है  उस जा कोई पहुंच न पाएगा मुस्तफा की जहां रेसाई है  जिसने तौहीन की है आक़ा की उसकी खातिर कहां रेहाई है  नात लिखने लगा हूं जब से मैं खूब इज़्ज़त जहां पाई है  करना सरताज तू भी ज़िक्रे रब दर्दे दिल की यही दवाई है   सरताज अहमद सहने मऊ सिकन्दर पुर अम्बेडकर नगर




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